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HARIDWAR. उत्तराखंड के हरिद्वार शहर में शिवालिक पर्वत श्रृंखलाओं के मुख शिखर पर स्थित मां मनसा देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। मनसा का शाब्दिक अर्थ है इच्छा पूर्ण करने वाली देवी। जो भी व्यक्ति माता के मंदिर में आता है वह अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए मंदिर परिसर में स्थित पेड़ की शाखाओं में धागा बांधते हैं। एक बार जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है तो लोग पेड़ से धागा खोलने के लिए दोबारा इस मंदिर में आते हैं।
200 साल से पुराना है मंदिर
मनसा देवी मंदिर का निर्माण राजा गोला सिंह ने 1811 से 1815 के बीच किया था। यह मंदिर उन चार स्थानों में से एक है, जहां समुद्र मंथन के बाद निकले अमृत की कुछ बूंदें गलती से यहां पर गिर गईं थीं। बाद में इस स्थान पर माता के मंदिर का निर्माण किया गया था। मंदिर में मां की दो मूर्तियां स्थापित की गयी हैं। एक प्रतिमा में उनके तीन मुख और पांच भुजाएं हैं। दूसरे में आठ भुजाएं हैं। मां कमल और सर्प पर विराजित हैं। यह भी मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण में भी आता है। इसमें मनसा देवी को दसवीं देवी माना गया है। मान्यता है कि एक बार जब महिषासुर राक्षस ने देवताओं को पराजित कर दिया। इसके बाद देवताओं ने देवी का स्मरण किया। देवी ने प्रकट होकर महिषासुर का वध कर दिया। इस पर देवताओं ने देवी की पूजा अर्चना की और देवी से कहा कि जिस प्रकाश से आपने हमारी मनसा को पूरा किया, इस प्रकार कलियुग में भी भक्तों की मनसा को पूरा कर उनकी विपत्तियों को दूर करें।
मंदिर की स्थापना को लेकर मान्यता
देवी ने हरिद्वार के शिवालिक पर्वतमाला के मुख्य शिखर के पास ही विश्राम किया गया। इसी कारण से यहां मनसा देवी मंदिर की स्थापना हुई। मान्यता है कि इसी जगह पर मनसा देवी की मूर्ति प्रतिष्ठित हुई। कालांतर में यहां मंदिर बनाया गया और मंदिर में आज भी मां मनसा देवी की मूर्ति विराजमान है।
मनसा देवी की पौराणिक मान्यताएं
मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। मां मनसा को नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी पूजा जाता है। मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। मां मनसा को नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी पूजा जाता है। अलग-अलग पुराणों में मां मनसा देवी का वर्णन अलग-अलग प्रकार से किया गया है। पुराणों में बताया गया है कि इनका जन्म कश्यप ऋत्रि के मस्तिष्क से हुआ था और मनसा किसी भी विष से अधिक शक्तिशाली थीं, इसलिये ब्रह्मा ने इनका नाम विषहरी रखा। वहीं विष्णु पुराण के चतुर्थ भाग में एक नागकन्या का वर्णन है, जो आगे चलकर मनसा के नाम से प्रचलित हुई। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अंतर्गत एक नागकन्या थी, जो शिव और कृष्ण की भक्त थीं।
कहते हैं कि मनसा माता ने भगवान शंकर की कठोर तपस्या करके वेदों का ज्ञान और श्रीकृष्ण मंत्र प्राप्त किया था, जो कल्पतरु मंत्र कहलाता है। इसके बाद उन्होंने राजस्थान के पुष्कर में पुन: तप किया और श्रीकृष्ण के दर्शन प्राप्त किए थे। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया था कि तीनों लोक में तुम्हारी पूजा होगी।
मनसा देवी की पूजा
बंगाल में मनसा देवी की पूजा गंगा दशहरा के दिन होती है, जबकि कहीं-कहीं कृष्णपक्ष पंचमी को भी देवी की पूजी जाती हैं। मान्यता अनुसार, पंचमी के दिन घर के आंगन में नागफनी की शाखा पर मनसा देवी की पूजा करने से विष का भय नहीं रह जाता। मनसा देवी की पूजा के बाद ही नाग पूजा होती है। आमतौर पर उनकी पूजा बिना किसी प्रतिमा या तस्वीर के होती है। इसकी जगह पर पेड़ की कोई डाल, मिट्टी का घड़ा या फिर मिट्टी का सांप बनाकर पूजा जाता है। चिकन पॉक्स या सांप काटने से बचाने के लिए उनकी पूजा होती है।
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